सोशल मीडिया का भ्रम जाल
इससे पहले की अपने लेख में मैंने सोशल मीडिया से जुड़ी साकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को संक्षिप्त शब्दों में साझा किया है। साथ ही हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है की सोशल मीडिया से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा किया जाय। यह बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण विषय हैं क्योंकि सोशल मीडिया का भ्रम जाल हमारे निजता, पारिवारिक सौहार्द, बौद्धिक जीवन, संस्कृति, सामाजिक समरसता को बर्बाद कर रहा है, और यह भ्रम जाल में सबसे ज्यादा बच्चें तथा यूवा पीढ़ी बर्बाद हो रहे है। मानव जीवन की उम्र की अवस्थाओं की बात करें तो किशोरावास्था और युवावस्था यह वह प्रभावशाली अवस्थाएं है जिनके विचार आगे का भविष्य को सृजन करने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह अवस्था आदान–प्रदान की अवस्था होता है। एक अवस्था आदान करता है और दूसरा अवस्था प्रदान करता है यानी सरल शब्दों में कहें तो किशोरावस्था कुछ लेने की क्रिया है और युवावस्था कुछ देने की क्रिया है। भविष्य सृजन का अर्थ सिर्फ संसाधानों का अविष्कार करना नही होता बल्कि रहन–सहन, संस्कृति, सामाजिक समरसता, बौद्धिक ज्ञान, संबंधों इत्यादि से जुड़ा है।
मानव जीवन की आयु की अवस्थाएं इस प्रकार हैं:
शैशवावस्था: जन्म से लेकर लगभग 2 साल तक
बाल्यावस्था: 2 से 12 साल तक
किशोरावस्था: 12 से 19 साल तक
युवावस्था: 19 से 40 साल तक
मध्यवय: 40 से 65 साल तक
वृद्धावस्था: 65 साल से अधिक
यदि इन सभी अवस्थाओं को विस्तार से समझा जाय तो शैशवावस्था और बाल्यावस्था दोनो ही कोरा कागज़ के सामान होते है। जिस प्रकार का पारिवारिक और इर्द गिर्द का सामाजिक परिवेश होता है उस प्रकार से इनका बौद्धिक विकास होता है। किशोरावस्था जो पारिवारिक जीवन से निकलकर बाहरी यानी सामाजिक जीवन में प्रवेश करते हैं, और विभिन्न प्रकार के सामाजिक गतिविधियों व नीतियों से प्रभावित होकर अपना भविष्य तय करने के लिए एक मार्ग अपनाते है। वही मानव जीवन में युवावस्था की एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मध्यवय व वृद्धावस्था मार्गदर्शिका का काम कर सकते है, पर भविष्य का सृजनात्मक अवस्था सामाज का युवा पीढ़ी होता है। यूवा पीढ़ी सामाज में हर एक पहलु पर एक नई क्रांति लाने में सामर्थ रखते है। वही क्रांति आगे का भविष्य सुनिश्चित करता है। यह स्वयं में विचार करने वाला विषय हैं कि क्या सोशल मीडिया का भ्रम जाल वास्तव में हमारे जीवन जीने के मूल बुनियादी समूल को आबाद कर रहा है या बर्बाद?
जीवन और जीविका एक ही पहलू के दो अलग अलग शब्द है। जीवन जीने की शैली एक बात है और जीविका चलाना दूसरी बात है। जीवन शैली हमारे व्यवहार, आचरण, संस्कृति इत्यादि से जुड़ा हुआ है और जीविका हमारे जरूरत के संसाधनों से जुड़ा है। सोशल मीडिया की हमारे जीवन में अनिवार्यता की एक मर्यादा निर्धारित करना बहुत आवश्यक है। ताकि जीवन शैली के बुनियादी समूल ख़त्म न हो। सोशल मीडिया की उपयोगिता समसामयिक घटनाओं को प्रेषित करने और उसके समाधान में जो क्रांति आती है यह सोशल मीडिया का साकारात्मक पहलु है। साथ ही लोगों के कलात्मक कार्य, व्यवसाय, इत्यादि को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया की यह साकारात्मक भूमिका है। परंतु अब सोशल मीडिया का भ्रम जाल हमारे जीवन शैली के बुनियादी समूल को ख़त्म कर रहा है। हमारे जीवन जीने की उत्सुकता को ख़त्म कर रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को यह ज्ञात होगा कि संपूर्ण मानव प्रणाली का नियंत्रण अब किसी एक के हाथ में जा रहा है। यह स्वयं में एक विचारणीय विषय है।
जितेन्द्र कुमार गुप्ता
भारतीय फिल्म मेकर
Super
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेखन है
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