"डर हमारी चेतना को सचेत करके सही मार्ग अपनाने में मदद करता है, जो हर जीवित प्राणी में स्वाभाविक रूप से मौजूद है। डर हमारे बेहतर व्यक्तित्व के निर्माण में या सफल जीवन के निर्माण में आवश्यक है।” डर एक अप्रिय भावना है, जो किसी खतरे या नुकसान की आशंका से पैदा होती है। डर को कई नामों से जाना जाता है, जैसे कि भय, खौफ़, घबराहट, चिंता, इत्यादि। डर की हद और सीमा हर प्राणी में अलग अलग हो सकती है, लेकिन भावना एक जैसी ही होती है। व्यक्तियों में डर कई प्रकार के आकार लेते है। अलग अलग अवस्थाओं में डर से हमारे शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती है। हर व्यक्ति के भीतर का भय एक रेस का हिस्सा है, वह चाहें जिस भाव में हो। प्रत्येक प्राणी चाहे वो कोई मनुष्य हो या जानवर डर स्थाई रूप से सबमें मौजूद है। डर यानी भय से प्राणी सही मार्ग अपनाता है या गलत, पर दोनों ही स्थितियों में डर का होना स्वाभाविक है। व्यक्तियों के डर केवल उनके स्वभाव पर निर्भर नहीं होते हैं, बल्कि उनके पारिवारिक संबंधों, सामाजिक संबंधों और संस्कृति से भी आकार लेते हैं, जो उनकी समझ को निर्देशित करते हैं कि कब और...
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