डर के आगे जीत है.
"डर हमारी चेतना को सचेत करके सही मार्ग अपनाने में मदद करता है, जो हर जीवित प्राणी में स्वाभाविक रूप से मौजूद है। डर हमारे बेहतर व्यक्तित्व के निर्माण में या सफल जीवन के निर्माण में आवश्यक है।”
डर एक अप्रिय भावना है, जो किसी खतरे या नुकसान की आशंका से पैदा होती है। डर को कई नामों से जाना जाता है, जैसे कि भय, खौफ़, घबराहट, चिंता, इत्यादि। डर की हद और सीमा हर प्राणी में अलग अलग हो सकती है, लेकिन भावना एक जैसी ही होती है। व्यक्तियों में डर कई प्रकार के आकार लेते है। अलग अलग अवस्थाओं में डर से हमारे शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती है। हर व्यक्ति के भीतर का भय एक रेस का हिस्सा है, वह चाहें जिस भाव में हो।
प्रत्येक प्राणी चाहे वो कोई मनुष्य हो या जानवर डर स्थाई रूप से सबमें मौजूद है। डर यानी भय से प्राणी सही मार्ग अपनाता है या गलत, पर दोनों ही स्थितियों में डर का होना स्वाभाविक है। व्यक्तियों के डर केवल उनके स्वभाव पर निर्भर नहीं होते हैं, बल्कि उनके पारिवारिक संबंधों, सामाजिक संबंधों और संस्कृति से भी आकार लेते हैं, जो उनकी समझ को निर्देशित करते हैं कि कब और कितना डर महसूस करना है। यही डर हमारे परिवारिक, समाजिक और सांस्कृतिक विशेषताओं का समन्वय बनाए रखता है।
अधिकांश व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर अपने भविष्य की रूप रेखा बनाते हैं, तो उनके भीतर मौजूद अनजान डर से ही संचालित हो रहे होते है। इस प्रकार के डर हमारे जीवन में दिशानिर्धारक के रूप में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका में होता है। डर जब ज्ञान की धारा में हो तो हमारे जीवन को सार्थक दिशा देता है। भय और ज्ञान के संबंधों पर प्राचीनकाल से ही हमारे विचारकों ने पर्याप्त विमर्श और चिंतन किया है। हमारी ज्ञान परंपरा में भी इस बात के तमाम प्रमाण है कि हर प्रकार के भय अथवा डर के विरुद्ध हमारा ज्ञान प्रमुख हथियार है।
अंधेरे में खड़ा कोई व्यक्ति इस बात से नही डरता है कि वह अकेला है बल्कि दूसरे के होने की आशंका से डरता है। डर जब किसी व्यक्ति के नियंत्रण में होता है तो उस व्यक्ति का डर सही दिशानिर्देशक की भूमिका में होता है। एक सफल व्यक्तित्व, सफल जीवन के पीछे भी डर का स्वाभाविक रूप से भूमिका होती है। डर सामाजिक व्यवस्था को सुचारू ढंग से संचालित करता है। डर हमारा प्रारंभिक आत्मज्ञान का भाव है, जो अप्रिय भावना हो सकता है, परन्तु हमारे जीवन का सही दिशानिर्धारक हमारे भीतर मौजूद अनजान डर ही है।
डर के आगे जीत है: सही मायने में जीत हासिल करना होता है, हमारा बेहतर व्यक्तित्व, परिवारिक, सामाजिक व्यवस्था, सांस्कृतिक व्यवस्था और प्राकृतिक सौन्दर्य का परस्पर समन्वय बना रहे।
आपन तेज सम्हाले आपै तीनों लोक हांक ते कापे
ReplyDeleteSo sweet sir amazing very nice post I like this your post
ReplyDeleteDarr ki satik vyakhya, apki lekhani me dhar badhti ja rahi hai
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice Article
ReplyDeleteIt's true
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