आत्मज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है।
वास्तव में मोक्ष का मार्ग क्या है? क्या वास्तव में यह धर्म, अर्थ, या काम संगत है, या जीवन, मृत्यु, और पुनर्जन्म के चक्र से आज़ाद होना मोक्ष है? मोक्ष एक दार्शनिक शब्द है, जो सभी धर्मों में प्रमुखता से आता है जिसका अर्थ है मोह का क्षय होना या एक शब्द में इसे कहे तो ‘मुक्ति’। संसार में जन्मा मानव मोक्ष अथवा मुक्ति का मार्ग पाना चाहता हैं। अब ऐसे में प्रश्न उठता है कि हमें ‘मुक्ति’ किससे चाहिए और क्यों चाहिए? क्या मोक्ष का असल तात्पर्य जीवन के अंतर्गत है, या मृत्यु के पश्चात?
मनुष्य जीवन को चार प्रमुख उद्देश्यों में बांटा गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। ये चारों आपस में गहरा संबन्ध रखते हैं। धर्म का अर्थ है वे सभी कार्य जो आत्मा व समाज की उन्नति करने वाले हों। अर्थ से तात्पर्य है किसी अच्छे कलात्मक कार्य द्वारा धनार्जन करना। काम का अर्थ है जीवन को सात्विक व सुःख सुविधासंपन्न बनाना। मोक्ष का अर्थ है आत्मा द्वारा अपना और परमात्मा का दर्शन करना। मानव जीवन में मोक्ष से जुड़ी अलग अलग धारणाएं और विचार देखने और सुनने को मिलती है। सभी प्रणालियों में मोक्ष की कल्पना प्रायः आत्मवादी है। भारतीय दर्शन में नष्ट होने का भाव को दुःख का कारण माना गया है। प्राय: सभी दार्शनिक प्रणालियों ने संसार के दुःखमय स्वभाव को स्वीकार किया है और इससे मुक्त होने के लिये कर्ममार्ग या ज्ञानमार्ग का रास्ता अपनाया है। मोक्ष इस तरह के जीवन की अंतिम परिणति है। उपनिषदों में आनन्द की स्थिति को ही मोक्ष की स्थिति कहा गया है, क्योंकि आनन्द में सारे द्वंद्वों का विलय हो जाता है। यह सभी प्राणियों की आत्मा के साथ एकता की स्थिति है। इसी जीवन में इसे अनुभव किया जा सकता है।
मनुष्य प्रत्यक्ष रूपी जीवन की अनुभूति न करते हुए पुनर्जन्म के चक्र की अवधारणा में फस जाता है। जबकि प्रत्येक मनुष्य को पता है कि हमारा प्रत्यक्ष शरीर एक ही जीवन के लिए है। शरीर के नष्ट होते ही वह पुनर्जन्म के आवागमन से भी मुक्त हो जाता है। इस जगत में जन्मा मनुष्य अपने शैशवावस्था से लेकर बाल्यावस्था तक मनुष्यों द्वारा बनाएं सभी अवधारणाओं से अनजान रहता है। ज्यों ज्यों मनुष्य मानसिक, भावनात्मक और बौद्धिक रूप से विकसित होने लगता है वह कई अवधारणाओं के प्रपंच में फस जाता है। जब की मुनष्य हर पल प्रत्यक्ष तथ्यों और प्रत्यक्ष संबंधों से निर्देशित होता है। वास्तव में मनुष्य के प्रत्यक्ष शरीर के जीवन से ही मोक्ष की कल्पना है। जीवन को सात्विक रूप में जीना ही मोक्ष है। सात्विक मनुष्य अपने निजी व्यक्तित्व को सार्थक जीवन शैली में ढालता है तो अपने संबंधों के प्रति, समाज और वैश्विक कल्याण के लिए कार्य करता है। यही धारा मोक्ष की ओर ले जाता है। आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर वास्तविक जीवन स्वरूप का बोध प्राप्त करना मोक्ष है। अज्ञानतापूर्ण गलत धारणा के प्रपंच से मुक्ति पाना मोक्ष है।
जितेन्द्र कुमार गुप्ता
फिल्म निर्देशन/लेखक
Bahut hi umda 👌
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteBahucha hai
ReplyDeleteIt's true
ReplyDelete