हमारा शाश्वत जीवन


क्या हमारे जीवन काल में एक शरीर के नष्ट होने से हमारा अस्तित्व खत्म हो जाता है? यह मेरा कोई प्रश्न नही है बल्कि एक एहसास जो स्वयं में विचार करने के लिए प्रेरित करता है और अपने मौजूदगी को एक सार्थक दिशा देने में मदत करता है। जिस प्रकार किसी वृक्ष का बीज मिट्टी के गर्भ में समाहित हो अंकुरित होकर फिर एक वृक्ष का रुप लेता है तो वह वृक्ष सदा के लिए शाश्वत हो जाता है। उसी प्रकार मानव जीवन भी माता–पिता के रूप में सदा के लिए शाश्वत हो जाता है।

संस्कारों की श्रृंखला हमारे जीवन में रिश्तों के प्रति बहुत मायने रखता है, जो हमारे जीवन को प्राकृतिक संरचनाओं में अत्यंत रमणीय बनाता है। वह रिश्ता चाहे प्राकृतिक रूप से हो, या हमारे आचरण, व्यवहार इत्यादि से बनाए हुए हो। पति–पत्नी होना वह एक अवस्था है। उस पति–पत्नी के अंश से जब किसी पुत्र या पुत्री का जन्म होता है, तब वह पति–पत्नी एक माता–पिता के अवस्था में प्रवेश कर जाते है। यही अवस्था की श्रृंखला सदा के लिए हमें शाश्वत बनाता है। एक शरीर नष्ट होता है, पर उस शरीर का अंश शाश्वत होता है।

हम अपने जीवन में रिश्तों को सामान्य नजरिए में जब बेहतर ढंग से समझने लगते हैं, तो हमें रिश्तों के महत्व और गरिमा का एहसास होता है। वह एहसास ही हमारे जीवन काल में हर रिश्ते को मजबूत और खूबसूरत बनाता है।

जितेन्द्र कुमार गुप्ता
भारतीय फिल्म मेकर 

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