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Mister Natavar Lal

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मिस्टर एंड मिसेज चौधरी//भाग–२

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मिस्टर एंड मिसेज चौधरी

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सोशल मीडिया का भ्रम जाल

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इससे पहले की अपने लेख में मैंने सोशल मीडिया से जुड़ी साकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को संक्षिप्त शब्दों में साझा किया है। साथ ही हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है की सोशल मीडिया से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा किया जाय। यह बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण विषय हैं क्योंकि सोशल मीडिया का भ्रम जाल हमारे निजता, पारिवारिक सौहार्द, बौद्धिक जीवन, संस्कृति, सामाजिक समरसता को बर्बाद कर रहा है, और यह भ्रम जाल में सबसे ज्यादा बच्चें तथा यूवा पीढ़ी बर्बाद हो रहे है। मानव जीवन की उम्र की अवस्थाओं की बात करें तो किशोरावास्था और युवावस्था यह वह प्रभावशाली अवस्थाएं है जिनके विचार आगे का भविष्य को सृजन करने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह अवस्था आदान–प्रदान की अवस्था होता है। एक अवस्था आदान करता है और दूसरा अवस्था प्रदान करता है यानी सरल शब्दों में कहें तो किशोरावस्था कुछ लेने की क्रिया है और युवावस्था कुछ देने की क्रिया है। भविष्य सृजन का अर्थ सिर्फ संसाधानों का अविष्कार करना नही होता बल्कि रहन–सहन, संस्कृति, सामाजिक समरसता, बौद्धिक ज्ञान, संबंधों इत्यादि से जुड़ा है। मानव जीवन की आयु...

सोशल मीडिया क्रांति और मानव जीवन

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वक्त की समानता एक जैसी नही होती है। पीछले कई सालो में दुनियां आधुनिक तकनीक के मामले में काफी तरक्की कर चूका है जो मानव जीवन को आसान और बेहतर बनाता है। हम सभी जानते हैं कि विज्ञान और आविष्कार का साकारात्मक पहलु है तो उसका नकारात्मक पहलू भी है। कुछ ऐसा ही सोशल मीडिया के साथ भी है। सोशल मीडिया एक भ्रम जाल की तरह है, जिसमें सभी ऐसे उलझे हैं कि मनुष्य का आध्यात्मिक जीवन आबाद भी है और बर्बाद भी है। सोशल मीडिया लोगों के आध्यात्मिक जीवन पर भी प्रभाव डालेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था लेकिन ऐसा हो रहा है। सोशल मीडिया दुनियां को एक नई दिशा देने का काम किया इसमें कोई संदेह नही, साथ ही इसका मानव जीवन पर कई तरह का प्रभाव भी पडा है। अच्छा और बुरा दोनो असर देखने को मिलता है। सोशल मीडिया जहां एक तरफ दुनियां भर के लोगों को जोड़ने और बेहतर मार्ग देने का काम किया है, वही मनुष्य जीवन के बुनियादी संस्कारो व मर्यादाओं को भी भंग करने का कारण बना है। संस्कार व मर्यादा: मनुष्य जीवन पाना और जीवन को तरक्की के पथ पर ले जाना एक बात है, पर मनुष्य के संस्कार व मर्यादा उसके जीवन को प्राकृतिक संरचनाओं में श्र...

आत्मज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है।

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वास्तव में मोक्ष का मार्ग क्या है? क्या वास्तव में यह धर्म, अर्थ, या काम संगत है, या जीवन, मृत्यु, और पुनर्जन्म के चक्र से आज़ाद होना मोक्ष है? मोक्ष एक दार्शनिक शब्द है, जो सभी धर्मों में प्रमुखता से आता है जिसका अर्थ है मोह का क्षय होना या एक शब्द में इसे कहे तो ‘मुक्ति’। संसार में जन्मा मानव मोक्ष अथवा मुक्ति का मार्ग पाना चाहता हैं। अब ऐसे में प्रश्न उठता है कि हमें ‘मुक्ति’ किससे चाहिए और क्यों चाहिए? क्या मोक्ष का असल तात्पर्य जीवन के अंतर्गत है, या मृत्यु के पश्चात? मनुष्य जीवन को चार प्रमुख उद्देश्यों में बांटा गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । ये चारों आपस में गहरा संबन्ध रखते हैं। धर्म का अर्थ है वे सभी कार्य जो आत्मा व समाज की उन्नति करने वाले हों। अर्थ से तात्पर्य है किसी अच्छे कलात्मक कार्य द्वारा धनार्जन करना। काम का अर्थ है जीवन को सात्विक व सुःख सुविधासंपन्न बनाना। मोक्ष का अर्थ है आत्मा द्वारा अपना और परमात्मा का दर्शन करना। मानव जीवन में मोक्ष से जुड़ी अलग अलग धारणाएं और विचार देखने और सुनने को मिलती है। सभी प्रणालियों में मोक्ष की कल्पना प्रायः आत्मवादी...